शनिवार, 1 सितंबर 2012

इश्क़ को यहाँ कोई मुकाम ना मिला



इस जहाँ मे ना गम मिला ना गम का सामान मिला 
एक तेरे ही शहर मे बस नाम मेरा बदनाम मिला

रेत पे लिखी लकीरे तो ना थी मिटाना मुमकिन कभी 
मिला सुकून जब रास्ते मे तुझसा एक तूफान मिला

ये मोहब्बत तेरे क़ायदे ना कभी आए हमे
इसीलिए हमारे इश्क़ को यहाँ कोई मुकाम ना मिला

मिल सकता तो काश एक महबूब मिलता “अखिल”
पर तुझसे दिल लगा के हमे दर्द का इनाम मिला
                                            

रविवार, 27 मई 2012

ज़िंदगी के पन्नो मे लिखा है सब कुछ मिट जाने के लिए





ज़िंदगी के पन्नो मे लिखा है सब कुछ मिट जाने के लिए,
फिर भी सोचता है ये नादान दिल कुछ कर जाने के लिए 

माना पंख है छोटे बहुत पर हौसला तो बुलंद है
पड़ेगा छोटा ये आसमान एक दिन मेरी परवाज़ समाने के लिए

जाना कहाँ है और कहाँ पहुँच गया है तू "अखिल" इस जद्दोजहद मे
काफ़ी नही है चंद सिक्के, दो पल की खुशी जुटाने के लिए

पूछता है रह रह कर ये पलको का भीगा हुआ किनारा
कब आएगा वो दिन, जब कोई करेगा कोशिश तुझे हँसाने के लिए

परवाज़ = उड़ान

गुरुवार, 8 मार्च 2012

तेरी बाहों मे सिमटकर यूँ जिए जाते हैं



तेरी बाहों मे सिमटकर यूँ जिए जाते हैं,
जैसे चाहत को नये रास्ते मिल जाते हैं

हमने कब चाहा था मिले मोहब्बत तेरी,
हँसके तेरे हर इल्ज़ाम सहे जाते हैं

तेरे दिल मे ना हो सनम दर्द कोई ,
इसलिए गम को अकेले ही पिए जाते है

आ जाते हो अक्सर तुम याद यूँ ही,
जब किताबो मे तेरे खत मिल जाते हैं

ये असर है तेरी मोहब्बत का "अखिल"
जो मेरे बोल भी गीतो मे ढल जाते है

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

ज़िंदगी अधूरी ना लगे



जियो तो ऐसे जियो की ज़िंदगी अधूरी ना लगे,
मुस्कुराओ किसी पल मे, तो मज़बूरी ना  लगे

रफ़्तार भारी ज़िंदगी मे हर रिश्ता है कच्चे धागे सा
ना जाने दो उसे, जिसके बिना ज़िंदगी पूरी ना लगे

अजनबी शहर है तेरा, हर दिल यहाँ पत्थर सा,
कैसे सुना दूं हाल-ए-दिल, कुछ भी ज़रूरी ना लगे