शनिवार, 1 सितंबर 2012

इश्क़ को यहाँ कोई मुकाम ना मिला



इस जहाँ मे ना गम मिला ना गम का सामान मिला 
एक तेरे ही शहर मे बस नाम मेरा बदनाम मिला

रेत पे लिखी लकीरे तो ना थी मिटाना मुमकिन कभी 
मिला सुकून जब रास्ते मे तुझसा एक तूफान मिला

ये मोहब्बत तेरे क़ायदे ना कभी आए हमे
इसीलिए हमारे इश्क़ को यहाँ कोई मुकाम ना मिला

मिल सकता तो काश एक महबूब मिलता “अखिल”
पर तुझसे दिल लगा के हमे दर्द का इनाम मिला
                                            

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