बुधवार, 29 दिसंबर 2010

कभी किसी को यादों से मिटाकर देखिए


कभी किसी से नज़र मिलाकर देखिए,
हो सके तो एक दोस्त बनाकर देखिए

रुक जाएगा ज़िंदगी का कलम चलते चलते
कभी कोई खूबसूरत ग़ज़ल बनाकर देखिए

महफ़िलो मे तो लोग हँस ही लेते हैं
तन्हाई मे भी कभी मुस्कुराकर देखिए

अजीब सा सुकून है शब्दो के भंवर मे
अहसासो को पन्नो पे सजाकर  देखिए

रिश्तों को तोड़ना तो आसान है "अखिल"
कभी किसी को यादों से मिटाकर देखिए

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

अब आसमान की बात कर.......


ज़मीन को छोड़ , अब आसमान की बात कर
मुट्ठी भर ही सही, पर खुशी की तलाश कर

ये जिंदगी भी क्या है, बस पानी का बुलबुला है
जब भी किसी से बात कर, प्यार की बात कर

जब दर्द नही होगा तो, खुशी का मज़ा क्या होगा
हार से कभी ना मन को इस तरह उदास कर

तू अकेला नही" अखिल "इस दुनियाँ की भीड़ मे
सोने के पिंजरे मे अब आज़ादी की तलाश कर

शनिवार, 4 सितंबर 2010

चाँद भी पिघल जाए,उनकी सादगी को देखकर..



ना जाने वो दिल मे क्या राज़ छुपाए बैठे हैं
शायद एक खूबसूरत सा अंदाज़ छुपाए बैठे हैं

करीब होते, तो कह देते दिल का हाल सारा
तेरे दीदार की चाहत,अब दिल मे दबाए बैठे हैं

चाँद भी पिघल जाए,उनकी सादगी को देखकर
ये मेरे खुदा तू भी क्या क़ातिल चीज़ बनाए बैठे है 

उन्हे शिकायत है की, हमे प्यार नही है उनसे
कौन समझाए, हम भी क्या रोग लगाए बैठे हैं

सोमवार, 21 जून 2010

सताना तेरा चुपके से मुझे यूँ देखकर...


वो सताना तेरा चुपके से मुझे यूँ देखकर ,
अपने दिल की आरज़ू को दबाना याद है

आते देख कभी मेरा अचानक तेरे सामने 
तेरी धड़कनो का वो घबराना याद है

तेरे दिल पे लिखा था शायद मेरा नाम
तेरा खामोश लबो से प्यार जताना याद है

मेरा नाम ले ले कर अक्सर तन्हाई मे,
तुम्हारी सखियों का तुम्हे सताना याद है

वो मेरा इज़हारे मोहब्बत पे एक दिन सनम
तेरा बिन कहे शर्माकर चले जाना याद है

रविवार, 20 जून 2010

हर बात पर दिल जलाया ना करो ......


आते हो चेहरे पर चेहरा औड़कर,
यूँ रूख़ से परदा हटाया ना करो.

दोस्त हो हमारे कोई क़ातिल नही,
हर बात पर दिल जलाया ना करो

बहुत खूबसूरत है आँखे तुम्हारी,
इन आँखो मे कभी दर्द लाया करो

बहुत सी ठोकरे हैं ज़माने की राह मे
हर कही नंगे पैर जाया ना करो

शुक्रवार, 18 जून 2010

तूफ़ानो का काफिला साथ निकला....


चला था जिस रास्ते की ओर ,वो सफ़र तो कांटो भरा ताज निकला,
जुड़े जितने हमराह मुझसे , हर दिल मे ज़हर-ए- अल्फ़ाज़ निकला,

कैसे लोगो को बताऊं किन मुश्किलो से तुझको पाया है
जब सुना आपने बारे में, शब्द 'घमंडी' धोखेबाज निकला,

ये तो सच है दिल का थोड़ा बुरा तो मे भी हूँ लेकिन,
झाँका मेरे दिल मे किसी ने भी तो, मंज़र कुछ ख़ास निकला,

था अथाह समुंदर मेरे सामने जिंदगी का लेकिन "अखिल",
उतरना चाहा जब भी साहिल में, तूफ़ानो का काफिला साथ निकला.

तुमने हमे याद किया, ये बात समझ लेते हैं ..


तेरी आँखो की हम हर बात समझ लेते हैं,
रूठते हो तो अनकहा ज़ज्बात समझ लेते हैं

तू जो साथ हो तो हर मौसम है बहारो का,
तन्हाई मे हम दिन को भी, रात समझ लेते हैं

टकराता है जब भी कोई हवा का झोंका हमसे,
तुमने हमे याद किया, ये बात समझ लेते हैं

दिल तो रोता है "अखिल", बस तेरे  लिए,
जाने क्यों लोग इसे, बरसात समझ लेते है

बुधवार, 16 जून 2010

मेरे चाहने वालो मे कुछ नाम बाकी है..


चले गये मुसाफिर मंज़िलों की और,
पर आज भी कदमो के निशान बाकी है

अभी मत कहो हम प्यार के काबिल हैं,
मोहब्बत मे कुछ और इल्ज़ाम बाकी है

सजने दो महफ़िल को कुछ और देर यारो,
अभी उनके नाम के कुछ जाम बाकी है

क्यों आते हो चेहरे बदल -बदल कर,
अभी इस दिल मे आपकी कुछ पहचान बाकी है

कैसे लिखना छोड़ दूं दिल की बाते”अखिल”,
अभी मेरे चाहने वालो मे कुछ नाम बाकी है

सिहर जाओगे.....


मेरा नाम मिटाकर, तुम क्या पाओगे
आएगी जब याद ,मेरी सिहर जाओगे.

तय किया है लंबा सफ़र हम, दोनो ने
अब अकेले रस्तो पर, कहा जाओगे


दिखेगा खून, मेहन्दी भरे हाथो मे
जब घर किसी और का, बसाओगे


मैं क्या हूँ बस, मोम का पुतला हूँ
तुम पत्थर होकर भी, पिघल जाओगे

मंगलवार, 15 जून 2010

कितने भी गम हो जिंदगी मे, मुस्कुराना सीखो. ..


छूना हो अगर आंसमा तो, सर उठना सीखो,
कितने भी गम हो जिंदगी मे, मुस्कुराना सीखो.

दिल जलाना तो अब, फ़ितरत है लोगो की ,
तुम किसी की बातो मे, ना घर जलाना  सीखो.

क्यो फ़िक्र करते हो, तुमने कुछ नही पाया"अखिल"
अपनी मजबूरियो को ताक़त बनाना सीखो.

तकदीर तो बेवफा है, तुम्हे ये कहा ले जाएगी,
अब पत्थरो से अपनी बात मनवाना सीखो.

शुक्रवार, 4 जून 2010

आँखो मे आँसू और दिल मे ज़हर रखते हैं............



आँखो मे आँसू और दिल मे ज़हर रखते हैं
मेरे चाहने वाले भी क्या खूब हुनर रखते हैं

कह देते दिल का हाल,तो बात ही क्या थी
ना जाने क्यों ये अपनी बातों मे भंवर रखते हैं

जीते जी ना देखा मुड़ के कभी हमे प्यार से
अब क्यों वो मेरे ज़नाज़े पे नज़र रखते हैं

थम जाती है आज भी ये पगली हवा "अखिल"
जब भी वो मेरे ग़रीबखाने पे कदम रखते हैं

बुधवार, 2 जून 2010

तेरे छूने से पिघल जाऊँगा .............


यूँ ना मारो ठोकर मुझे
टूट कर बिखर जाऊँगा

अश्क हूँ तेरी आँखो का,
तेरी पलको पर ठहर जाऊँगा

कहाँ जुदा है रास्ते अपने
तुझसे दूर किधर जाऊँगा

मोम हूँ संग दिल नही
तेरे छूने से पिघल जाऊँगा

मंगलवार, 1 जून 2010

दिल से उठता ये धुँआ धुँआ सा क्यो है.........


बेवफ़ाई है बुरी इस दुनिया मे, तो वफ़ा सज़ा क्यो है
इश्क़ अगर है एक खता, तो इसमे इतना मज़ा क्यो है

वो खुदा नही फिर भी क्यो करता हूँ इबादत उसकी
कुछ तो बात है उसमे, यूँ ही सारा शहर फिदा क्यो है

भिगो रखा है हमने खुद को आँसुओ की बारिश मे
फिर भी अक्सर दिल से उठता ये धुँआ धुँआ सा क्यो है

पूछते है लोग हमसे क्यो छोड़ दी आशिकी हमने
कोई बताए हमे इस दुनिया मे, हर दिल बेवफा क्यो है

AKHILESH GUPTA , BHIKANGAON , IITR

सीने मे बस एक जान होती है .................


कभी सुबह तो कभी शाम होती है,
ये जिंदगी क्यो वक़्त की गुलाम होती है

तुम लाख लगा लो चेहरे पर चेहरा,
पर हर किसी की एक पहचान होती है

लोग कहते है, दिल बदलकर हम जीते हैं,
कौन समझाए,सीने मे बस एक जान होती है

मैं तोड़ भी दूं जंजीरे ज़माने की लेकिन,
बाहर की दुनियाँ भी कहाँ आसान होती है

AKHILESH GUPTA BHIKANGAON IITR

सोमवार, 31 मई 2010

आज ग़ज़ल लिखू या कलाम लिखू......


आज ग़ज़ल लिखू या कलाम लिखू,
सोचा दोस्ती का खत आपके नाम लिखू.

लिखना तो बहुत चाहता था हमराज़ तेरे बारे मे,
पर नही चाहता था की सरेआम लिखू.

हम इतने अच्छे कभी ना थे दोस्त तेरे लिए,
इसीलिए सोचा ये दोस्ती का खत गुमनाम लिखू.

अब तो जमती है अक्सर हमारी महफिले,
या कल की दुश्मनी का कोहराम लिखू.

शिकायते तो बहुत थी तुम्हे लेकर ए दोस्त,
लेकिन सोचा अंत मे दुआ सलाम लिखू.

AKHILESH GUPTA , BHIKANGAON, IITR

कुछ अपना सा टटोल रही है जिंदगी ..........


वक़्त के साज़ पर दौड़ रही है जिंदगी,
कुछ अनकही बातों को तोल रही है जिंदगी

हर कोई दबा रहा है चेहरे के अंदर चेहरा,
पर सबके राज खोल रही है जिंदगी

उलझ जाता हूँ अक्सर अनसुलझे सवालो को लेकर,
अब भी कई राज है बाकी,बोल रही है जिंदगी

यूँ तो भीड़ है चारो और जमाने की "अखिल",
पर कुछ अपना सा टटोल रही है जिंदगी

AKHILESH , BHIKANGAON , IITR

पलभर मे ईमान बदल जाते है. ...............


ये रिश्ते भी क्या है, जो इंसान बदल जाते है,
कभी टूटते है,तो कभी पहचान बदल जाते है

दोस्तो से दोस्ती भी क्या खूब निभाई थी हमने,
पर कुछ लोगो के पलभर मे ईमान बदल जाते है.

लोग कहते है, किसी से वफ़ा ना कर सके हम,
चाहा तो बहुत,पर कुछ हालत बदल जाते है.

शायद यही फलसफा है इस दुनिया का 'अखिल'
तभी लोगो के रोते हुए ज़ज्बात बदल जाते है

AKHILESH GUPTA, BHIKANGAON, IITR