आज ग़ज़ल लिखू या कलाम लिखू,
सोचा दोस्ती का खत आपके नाम लिखू.
लिखना तो बहुत चाहता था हमराज़ तेरे बारे मे,
पर नही चाहता था की सरेआम लिखू.
हम इतने अच्छे कभी ना थे दोस्त तेरे लिए,
इसीलिए सोचा ये दोस्ती का खत गुमनाम लिखू.
अब तो जमती है अक्सर हमारी महफिले,
या कल की दुश्मनी का कोहराम लिखू.
शिकायते तो बहुत थी तुम्हे लेकर ए दोस्त,
लेकिन सोचा अंत मे दुआ सलाम लिखू.
AKHILESH GUPTA , BHIKANGAON, IITR
1 टिप्पणियाँ:
bahut khoob akhil ji
apko padna achcha laga
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