सोमवार, 31 मई 2010

कुछ अपना सा टटोल रही है जिंदगी ..........


वक़्त के साज़ पर दौड़ रही है जिंदगी,
कुछ अनकही बातों को तोल रही है जिंदगी

हर कोई दबा रहा है चेहरे के अंदर चेहरा,
पर सबके राज खोल रही है जिंदगी

उलझ जाता हूँ अक्सर अनसुलझे सवालो को लेकर,
अब भी कई राज है बाकी,बोल रही है जिंदगी

यूँ तो भीड़ है चारो और जमाने की "अखिल",
पर कुछ अपना सा टटोल रही है जिंदगी

AKHILESH , BHIKANGAON , IITR

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