सोमवार, 31 मई 2010

आज ग़ज़ल लिखू या कलाम लिखू......


आज ग़ज़ल लिखू या कलाम लिखू,
सोचा दोस्ती का खत आपके नाम लिखू.

लिखना तो बहुत चाहता था हमराज़ तेरे बारे मे,
पर नही चाहता था की सरेआम लिखू.

हम इतने अच्छे कभी ना थे दोस्त तेरे लिए,
इसीलिए सोचा ये दोस्ती का खत गुमनाम लिखू.

अब तो जमती है अक्सर हमारी महफिले,
या कल की दुश्मनी का कोहराम लिखू.

शिकायते तो बहुत थी तुम्हे लेकर ए दोस्त,
लेकिन सोचा अंत मे दुआ सलाम लिखू.

AKHILESH GUPTA , BHIKANGAON, IITR

कुछ अपना सा टटोल रही है जिंदगी ..........


वक़्त के साज़ पर दौड़ रही है जिंदगी,
कुछ अनकही बातों को तोल रही है जिंदगी

हर कोई दबा रहा है चेहरे के अंदर चेहरा,
पर सबके राज खोल रही है जिंदगी

उलझ जाता हूँ अक्सर अनसुलझे सवालो को लेकर,
अब भी कई राज है बाकी,बोल रही है जिंदगी

यूँ तो भीड़ है चारो और जमाने की "अखिल",
पर कुछ अपना सा टटोल रही है जिंदगी

AKHILESH , BHIKANGAON , IITR

पलभर मे ईमान बदल जाते है. ...............


ये रिश्ते भी क्या है, जो इंसान बदल जाते है,
कभी टूटते है,तो कभी पहचान बदल जाते है

दोस्तो से दोस्ती भी क्या खूब निभाई थी हमने,
पर कुछ लोगो के पलभर मे ईमान बदल जाते है.

लोग कहते है, किसी से वफ़ा ना कर सके हम,
चाहा तो बहुत,पर कुछ हालत बदल जाते है.

शायद यही फलसफा है इस दुनिया का 'अखिल'
तभी लोगो के रोते हुए ज़ज्बात बदल जाते है

AKHILESH GUPTA, BHIKANGAON, IITR