शुक्रवार, 18 जून 2010

तूफ़ानो का काफिला साथ निकला....


चला था जिस रास्ते की ओर ,वो सफ़र तो कांटो भरा ताज निकला,
जुड़े जितने हमराह मुझसे , हर दिल मे ज़हर-ए- अल्फ़ाज़ निकला,

कैसे लोगो को बताऊं किन मुश्किलो से तुझको पाया है
जब सुना आपने बारे में, शब्द 'घमंडी' धोखेबाज निकला,

ये तो सच है दिल का थोड़ा बुरा तो मे भी हूँ लेकिन,
झाँका मेरे दिल मे किसी ने भी तो, मंज़र कुछ ख़ास निकला,

था अथाह समुंदर मेरे सामने जिंदगी का लेकिन "अखिल",
उतरना चाहा जब भी साहिल में, तूफ़ानो का काफिला साथ निकला.

3 टिप्पणियाँ:

हरीश सिंह ने कहा…

aapka prayas bahut hi achchha laga, aise hi likhte rahiye. kabhi hamare blog par visit kariye.
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अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

gyaneshwaari singh ने कहा…

achchi koshish