रविवार, 3 फ़रवरी 2013

खामोश है ज़ुबाँ, आज कुछ आँख भी नम है


खामोश है ज़ुबाँ, आज कुछ आँख भी नम है,
ना मिला कोई अपना, बस यही एक गम है

जख़्मो को बना रहा है क्यो हमदर्द अपना
कब सुनी है दिल की, जमाना तो बेरहम है

पूछते है लोग, क्यो नही मिला दिलदार कभी
परवाह है कुछ जमाने की, कुछ आरज़ू बेदम है

"अखिल", लंबा है सफ़र, और काटें भी बहुत है
बना किसी को अपना, चाहने वाले क्या कम है

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

कुछ छुपा था दिल मे, आखों ने जता दिया हमे


जिंदगी तेरी उलझनो ने कितना सुलझा दिया हमे,
ना हमेशा दुख हैं, ना सुख कभी, बता दिया हमे

खामोश लब यूँ ना थे हमारे, यूँ तुम्हारे सामने
कुछ छुपा था दिल मे, आखों ने जता दिया हमे

मैं ही था, जो ग़ज़ल लिखता रहा, हर फ़लसफ़े पे
कभी दी अधरो पर मुस्कान, कभी सता दिया हमे

दर-बदर भटकता रहा, खुशी की तलाश मे "अखिल"
कौन है वो अपना, जिसने तेरा पता दिया हमे
                                - अखिलेश गुप्ता

शनिवार, 1 सितंबर 2012

इश्क़ को यहाँ कोई मुकाम ना मिला



इस जहाँ मे ना गम मिला ना गम का सामान मिला 
एक तेरे ही शहर मे बस नाम मेरा बदनाम मिला

रेत पे लिखी लकीरे तो ना थी मिटाना मुमकिन कभी 
मिला सुकून जब रास्ते मे तुझसा एक तूफान मिला

ये मोहब्बत तेरे क़ायदे ना कभी आए हमे
इसीलिए हमारे इश्क़ को यहाँ कोई मुकाम ना मिला

मिल सकता तो काश एक महबूब मिलता “अखिल”
पर तुझसे दिल लगा के हमे दर्द का इनाम मिला
                                            

रविवार, 27 मई 2012

ज़िंदगी के पन्नो मे लिखा है सब कुछ मिट जाने के लिए





ज़िंदगी के पन्नो मे लिखा है सब कुछ मिट जाने के लिए,
फिर भी सोचता है ये नादान दिल कुछ कर जाने के लिए 

माना पंख है छोटे बहुत पर हौसला तो बुलंद है
पड़ेगा छोटा ये आसमान एक दिन मेरी परवाज़ समाने के लिए

जाना कहाँ है और कहाँ पहुँच गया है तू "अखिल" इस जद्दोजहद मे
काफ़ी नही है चंद सिक्के, दो पल की खुशी जुटाने के लिए

पूछता है रह रह कर ये पलको का भीगा हुआ किनारा
कब आएगा वो दिन, जब कोई करेगा कोशिश तुझे हँसाने के लिए

परवाज़ = उड़ान

गुरुवार, 8 मार्च 2012

तेरी बाहों मे सिमटकर यूँ जिए जाते हैं



तेरी बाहों मे सिमटकर यूँ जिए जाते हैं,
जैसे चाहत को नये रास्ते मिल जाते हैं

हमने कब चाहा था मिले मोहब्बत तेरी,
हँसके तेरे हर इल्ज़ाम सहे जाते हैं

तेरे दिल मे ना हो सनम दर्द कोई ,
इसलिए गम को अकेले ही पिए जाते है

आ जाते हो अक्सर तुम याद यूँ ही,
जब किताबो मे तेरे खत मिल जाते हैं

ये असर है तेरी मोहब्बत का "अखिल"
जो मेरे बोल भी गीतो मे ढल जाते है

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

ज़िंदगी अधूरी ना लगे



जियो तो ऐसे जियो की ज़िंदगी अधूरी ना लगे,
मुस्कुराओ किसी पल मे, तो मज़बूरी ना  लगे

रफ़्तार भारी ज़िंदगी मे हर रिश्ता है कच्चे धागे सा
ना जाने दो उसे, जिसके बिना ज़िंदगी पूरी ना लगे

अजनबी शहर है तेरा, हर दिल यहाँ पत्थर सा,
कैसे सुना दूं हाल-ए-दिल, कुछ भी ज़रूरी ना लगे

शुक्रवार, 18 मार्च 2011


उनके दामन मे खुशी, और हमारे दिल मे गम है
खैर कोई बात नही,
आँख उसकी भी नम है और हमारी भी नम है

सोचते हैं कहे तो कैसे कहे ये हाले दिल
कुछ गुमा है खुद पर, कुछ आरज़ू हमारी बेदम है

कोशिशे बहुत की हमने, ना दिल लगाए पत्थर से
पर क्या करे क़ातिलों सा अंदाज़-ए-सनम है

खुद को जला के घर उनका रोशन कर दे"अखिल"
मिट जाए किसी के लिए, ये क्या मोहब्बत से कम है

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

कभी किसी को यादों से मिटाकर देखिए


कभी किसी से नज़र मिलाकर देखिए,
हो सके तो एक दोस्त बनाकर देखिए

रुक जाएगा ज़िंदगी का कलम चलते चलते
कभी कोई खूबसूरत ग़ज़ल बनाकर देखिए

महफ़िलो मे तो लोग हँस ही लेते हैं
तन्हाई मे भी कभी मुस्कुराकर देखिए

अजीब सा सुकून है शब्दो के भंवर मे
अहसासो को पन्नो पे सजाकर  देखिए

रिश्तों को तोड़ना तो आसान है "अखिल"
कभी किसी को यादों से मिटाकर देखिए